‘’सहते सहते मरने से अच्छी है लड़ाई कि बहना हाथ उठा ‘’
नारीवादी कार्यकर्ता और लेखिका, कवयित्री और समाज विज्ञानी कमला भसीन का जन्म 24 अप्रैल 1946 में मंडी बहाउ्दीन (पाकिस्तान) में हुआ था। और बीते 25 सितम्बर को पचहत्तर साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्होंने लीवर कैंसर के साथ तीन महीने लड़ाई लड़ीलेकिन,बीमारी और दर्दमें भी, हमेशा आशावादी रही ।
एक दिन हमने उनसे कहा की आप फाइटर हैं और बीमारी को लड़कर भगा देंगी, तो उन्होंने कहा – “नहीं नीना, इस बार मैं नहीं लड़ सकती । मुझे इस दर्द से आजादी के लिए लड़ना है, यह असहनीय है।”उन्होंने अपनी बीमारी के दौरान भी अपने सेंस ऑफ़ ह्यूमर को खोया नहीं। एक दिन उनकी बीमारी के दौरान हम उनसे व्हाट्सप्प के वौइस् मैसेज पर बात कर रहे थे। उनकी आवाज़ में बहुत दर्द था। हमने उनसे कहा – काश हम आपके सारे दर्द ले लेते , तो उन्होंने कहा ”लो अभी दे देते हैं”।
हमें इस बात का हमेशा मलाल रहेगा की आखिरी वक़्त में हम उनसे नहीं मिल पाए। नौ सितम्बर को उन्होंने कहा की ”जयपुर आओ, शायद उस समय मैं अपने भाई और भाभी के पास रहूँ, तुम अपने बेटे के साथ आना, शायद मिल लेंगे।” पर ऐसा नहीं हो पाया और कमला दी चली गयीं।जब उनसे आखिरी मुलाकात हुयी पटना में 10 मार्च, 2019 में तो उन्होंने हमें अपनी लिखीकुछ किताबें दी।कोविद के दौरान तो सिर्फ फ़ोन पर अक्सर बात होती थी, परमिलना नहीं हो पाया।
पचहत्तर साल की उम्र में भी हमने हमेशा उन्हें उत्साह और ऊर्जा से भरी एक नटखट युवती की तरह ही पाया। इस उम्र में भी काम करने की उनकी सक्रियता और ऊर्जाहमें प्रेरणासे सराबोरकरती रहती थी। कहने को तो वे पचहत्तर साल की थी पर इतनी उम्र की होने के बावजूद वह हर दिन अट्ठारह से उन्नीस घंटे लगातार काम करती रहतीं थीं।सारी उम्र स्त्री-पुरुष समानता के लिये संघर्षरत रही नारीवादी कार्यकर्ता और लेखिका के रूप में उन्होंने सिर्फ स्त्रियों को हीनहीं, बहुत से पुरुषों को भी नारीवाद का पाठ पढ़ाया।
कितनी स्मृतियां हैं कमला दीआपकी!
आप कहती थीं – ‘‘सिर्फ महिलाओं के संसद में आने से चीजें बेहतर नही होंगीं। मैं चाहतीं हूँ कि अधिक नारीवादी महिलाएं संसद में पहुंचे। जब नारीवादी महिला स्त्री-पुरूष समानता की बात करेगीं तो वे महिला कास्ट (जाति) के चक्कर में पीछे नहीं हटेंगीं। मैं नारीवादी महिला ही नहीं, मैं नारीवादी पुरूष भी चाहती हूँ, क्योंकि यह सोच है कोई जिस्मानी सोच नही है। नारीवाद से हमारा मतलब है ‘‘समानता और सिर्फ समानता।’’ दरअसलजितने सरल तऱीके से कमला दी ने नारीवाद की व्याख्या की, कोई दूसरा नही कर पाता। उनका कहना था कि जब तक आप पितृसत्ता, मर्दांनगी और स्त्री पुरूष की बराबरी संबंधी पारम्परिक और रूढ़िवादी धारणाओं को नही समझेंगे। आप स्त्री पुरूष की असमानता को समाप्त नही कर सकते।
कमला भसीन नेदक्षिण एशियाई देशों में नारीवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने ‘जागो री मूवमेंट’ के माध्यम से महिलाओं को पितृसत्तात्मक समाज से बाहर निकलने के लिए कई अथक प्रयास जारी रखे थे। उनके जाने से नारीवादी आंदोलन सहित जन आंदोलनों की क्षति हुई है।उन्होंने अपने दक्षिण एशियाई फेमिनिस्ट नेटवर्क ‘संगत’को वक़्त देने के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ अपनी नौकरी छोड़ दी।
वेपितृसत्तात्मक समाज के प्रति हमेशा मुखर रही। पितृसत्तात्मक समाज को खत्म करने के लिए उन्होंने सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि एशिया के कई देशों में जगह-जगह कार्यक्रम किए थे। उन्होंने एक मीडिया हाउस से बात करते हुए कहा था कि ‘कई करोड़ लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता है, इसके अलावा कई करोड़ महिलाओं को हर साल घर से निकाल दिया है, ऐसे में चुप रहना सही नहीं है और हक़ की लड़ाई लड़ते रहना चाहिए। उन्हें उनकी कविता “क्योंकि मैं लड़की हूं, मुझे पढ़ना है”के लिए भी जाना जाता है, जो युवा लड़कियों के लिए शिक्षा के अधिकार को सपोर्ट करता है।
कमला दी ने जेंडर समानता के विषय पर किताबें लिखी, और न जाने कितने गीत लिखे। सामाजिक लिंग की समझ, पितृसत्ता, और महिलाओं पर होने वाली हिंसा जैसे विषयों पर लिखी उनकी पुस्तकें और गीत जेंडर समानता जैसे विषय पर काम करने वाले देशभर के तमाम व्यक्तियों और संस्थाओं के लिये बेहद उपयोगी हैं। बहुत साल पहले 1987 में एक किताब पढ़ी थी छोटी सी कार्टूननुमा थी – “उल्टी सुल्टी मित्तो” एक छोटी सी बच्ची की कहानी थी, फिर आई एक किताब – “नारीवाद क्या है”,फिर पढ़ा “पितृ सत्ता क्या है”.उनकी प्रसिद्ध किताबो में पितृसत्ता क्या है, मर्दानगी की खोज, ‘’बॉर्डर एंड बॉउंडरीस’’: भारत के विभाजन में महिलाएँ, रेड फेयरी और मितवा जैसे नाम शामिल है।उन्होंने लिंग भेदभाव, शिक्षा, मानव विकास, महिला सम्मान आदि विषयों पर खुलकर समाज खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी आपने जीवन का जश्न मनाया। कमला दी की बेटी मीतो भसीन मलिक की 2006 में आत्महत्या से मृत्यु हो गई थी।उनके मुताबिक़, मीतो को क्लीनिकल डिप्रेशन हुआ था और कुछ समय बाद उसने दवा लेना बंद कर दिया था।उनका एक बेटा छोटूजीत सिंह, जिसे सेरेब्रल पाल्सी है, (एक साल की उम्र में उसे एक वैक्सीन का रिएक्शन हो गया था) ।
कमला दी, आपकेविचार, गीत, चुटकुले और साथियों के बीच विषिष्ट पहचान रखने वाली आपकी उन्मुक्त हंसी हमेशा जीवित रहेगी।आपकी यादें, आपकी मुस्कान, आपकी बातें, आपकी कविताएं, आपके किये हर काम नेहमें जीना सिखाया।कमला दी आप हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगी, हमारी यादों में, अपनी किताबों में, अपनी कविताओं में और अपने गीतों में: